Long essay in Hindi PDF Download | हिंदी निबंध पीडीएफ डाउनलोड

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विज्ञान : वरदान है या अभिशाप और पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और समाधान पर हिंदी निबंध लिखे गए हैं जो निम्नलिखित हैं :-

विज्ञान : वरदान है या अभिशाप पर हिंदी में निबंध

प्रस्तावना

आज का काल वैज्ञानिक चमत्कारों का काल है। मानव जीवन के हर एक क्षेत्र में विज्ञान ने आश्चर्य जनक क्रान्ति ला दी है। मानव-समाज की सारी गतिविधि आज विज्ञान से परिचालित है। प्रकृति पर विजय प्राप्त कर आज विज्ञान मानव का भाग्यविधाता बन बैठा है।

अज्ञात रहस्यों की खोज में उसने आकाश की ऊँचाइ से लेकर पाताल की गहराइ तक नाप दी हैं। उसने हमारे जीवन को सभी ओर से इतना अच्छा बना दिया है कि विज्ञान-शून्य विश्व की आज कोई कल्पना तक नहीं कर सकता , किन्तु दूसरी तरफ वैज्ञानिक ने मानव के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया है। इस स्थिति में हमें सोचना पड़ सकता है कि विज्ञान को वरदान समझा जाए या अभिशाप । इन दोनों पक्षों पर समन्वित दृष्टि से विचार करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना उचित होगा।

विज्ञान : वरदान की दृष्टि से

आधुनिक मानव का सम्पूर्ण पर्यावरण विज्ञान के वरदानों के क्रान्ति से आलोकित है। जागरण से लेकर रात के सोने तक के सभी क्रिया कलाप विज्ञान द्वारा प्रदत्त साधनों के सहारे ही संचालित होते हैं। प्रकाश, पंखा, पानी, साबुन, गैस स्टोव, फ्रीज, कूलर, हीटर और शीशा , कंघी से लेकर रिक्शा, साइकिल, स्कूटर, बस, कार , रेल , हवाई जहाज, टी०वी०, सिनेमा, रेडियो आदि जितने भी साधनों का हम अपने दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं, वे सब विज्ञान के ही वरदान है।

विज्ञान के इन विविध वरदानों की उपयोगिता कुछ प्रमुख क्षेत्रों में निम्नलिखित है-

यातायात के क्षेत्र में :- प्राचीन काल में मनुष्य को लम्बी यात्रा तय करने में कई साल लग जाते थे, किन्तु आज रेल, मोटर, जलपोत, वायुयान आदि के आविष्कार से दूर-से-दूर स्थानों पर बहुत जल्दी पहुँच जाता है। यातायात और परिवहन की उन्नति से व्यापार की भी कायापलट हो गयी है। मानव केवल धरती ही नहीं, अपितु चन्द्रमा और मंगल जैसे दूरस्थ ग्रहों तक भी पहुँच गया है। अकाल, बाढ़, सूखा आदि प्राकृतिक विपत्तियों से पीड़ित व्यक्तियों की सहायता के लिए भी ये साधन बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इन्हीं के चलते आज सम्पूर्ण विश्व एक बाजार बन गया है।

संचार के क्षेत्र में :- इस संचार के क्षेत्र में कई क्रान्ति ला दी है। आकाशवाणी, दूरदर्शन, तार, दूरभाष (टेलीफोन, मोबाइल फोन), टेलीप्रिण्टर, फैक्स आदि की सहायता से कोई भी समाचार क्षण भर में विश्व के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचाया जा सकता है। कृत्रिम उपग्रहों ने इस दिशा में और भी चमत्कार कर दिखाया है।

दैनिक जीवन में :- विद्युत् के आविष्कार ने मनुष्य की दिन दिन सुख-सुविधाओं को बहुत बढ़ा दिया है। वह हमारे कपड़े धोती है, उन पर प्रेस करती है, खाना पकाती है, सर्दियों में गर्म जल और गर्मियों में शीतल जल उपलब्ध कराती है गर्मी-सर्दी दोनों से समान रूप से हमारी रक्षा करती है। आज की समस्त औद्योगिक प्रगति इसी पर निर्भर है।

स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में :- मानव को भयानक और संक्रामक रोगों से पर्याप्त सीमा तक बचाने का श्रेय विज्ञान को ही है। कैंसर, क्षय टी० बी०, हृदय रोग एवं अनेक जटिल रोगों का इलाज विज्ञान द्वारा ही सम्भव हुआ है। एक्स-रे एवं अल्ट्रासाउण्ड टेस्ट, ऐन्जियोग्राफी, कैट स्कैन आदि परीक्षणों के ज़रिए शरीर के अन्दर के रोगों का पता सरलतापूर्वक लगाया जा सकता है। भीषण रोगों के लिए आविष्कृत टीकों से इन रोगों की रोकथाम सम्भव हुई है। प्लास्टिक सर्जरी, ऑपरेशन, कृत्रिम अंगों का प्रत्यारोपण आदि उपायों से अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति दि जा रही है। इससे नेत्रहीनों को नेत्र, कर्णहीनों को कान और अंगहीनों को अंग देना सम्भव हो सका है।

औद्योगिक क्षेत्र में :- भारी मशीनों के निर्माण ने बड़े-बड़े कल-कारखानों को जन्म दिया है, जिससे श्रम, समय और धन की बचत के साथ-साथ प्रचुर मात्रा में उत्पादन सम्भव हुआ है। इससे विशाल जनसमूह को आवश्यक वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर उपलब्ध करायी जा सकी हैं।

कृषि के क्षेत्र में :- 135 करोड़ से ऊपर की जनसंख्या वाला हमारा देश आज यदि कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो सका है तो यह भी विज्ञान की ही देन है। विज्ञान ने किसान को उत्तम बीज, प्रौढ़ एवं विकसित तकनीक, रासायनिक खादें, कीटनाशक, ट्रैक्टर, ट्यूबवेल और बिजली दी है। छोटे-बड़े बाँधों का निर्माण कर नहरें निकालना भी विज्ञान से ही सम्भव हुआ है।

शिक्षा के क्षेत्र में :- मुद्रण यन्त्रों के आविष्कार ने ज्यादा संख्या में पुस्तकों का प्रकाशन सम्भव बनाया है, जिससे पुस्तकें सस्ते मूल्य पर मिल सकी हैं। इसके अतिरिक्त समाचार-पत्र, पत्र ,पत्रिकाएँ आदि भी मुद्रण-क्षेत्र में हुई क्रान्ति के फलस्वरूप घर-घर लोगों को ज्ञान दे रही हैं। आकाशवाणी- दूरदर्शन आदि की सहायता से शिक्षा के प्रसार में बड़ी सहायता मिली है। कम्प्यूटर के विकास ने तो इस क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है

मनोरंजन के क्षेत्र में :-आकाशवाणी ,दूरदर्शन , चलचित्र , आदि के आविष्कार ने मनोरंजन को सस्ता और अच्छा बना दिया है टेपरिकॉर्डर , वी० सी० आर०, वी० सी० डी०, डी० वी० डी० आदि ने इस दिशा में क्रान्ति ला दी है और मनुष्य को उच्च कोटि का मनोरंजन सुलभ कराया है।

संक्षेप :- मानव के जीवन के लिए विज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई वरदान नहीं है।

विज्ञान : अभिशाप के रूप में

विज्ञान का एक और पक्ष भी है। विज्ञान ने मनुष्य के हाथ में बहुत अधिक शक्ति दे दी है , किंतु उसके प्रयोग पर कोई अंकुश नहीं लगाया है स्वार्थी मानव इस शक्ति का प्रयोग जितना रचनात्मक कार्य के लिए कर रहा है उससे अधिक प्रयोग विनाशकारी कार्यों के लिए भी कर रहा है ।

उपसंहार

विज्ञान एक तरह से तलवार है, जिससे व्यक्ति आत्मनिर्भर , आत्मरक्षा भी कर सकता है और गंभीर परिस्थितियों में अपने अंग भी काट सकता है। इसमें दोष तलवार का नहीं, उसके प्रयोक्ता का है। विज्ञान ने मानव के सम्मुख असीमित विकास का रास्ता खोल दिया है, जिससे मनुष्य संसार से बेरोजगारी, भुखमरी, महामारी आदि को समूल नष्ट कर विश्व को अभूतपूर्व सुख-समृद्धि की ओर ले जा सकता है।

अणु-शक्ति का कल्याणकारी कार्यों में उपयोग असीमित सम्भावनाओं का द्वार उन्मुक्त कर सकता है। बड़े-बड़े रेगिस्तानों को लहराते खेतों में बदलना, दुर्लध्य पर्वतों पर मार्ग बनाकर दूरस्थ अंचलों में बसे लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना, विशाल बाँधों का निर्माण एवं विद्युत् उत्पादन आदि अगणित कार्यों में इसका उपयोग हो सकता है, किन्तु यह तभी सम्भव है, जब मनुष्य में आध्यात्मिक दृष्टि का विकास हो, मानव-कल्याण की सात्त्विक भावना जगे। अतः स्वयं मानव को ही यह निर्णय करना है कि वह विज्ञान को वरदान रहने दे या अभिशाप बना दे ।

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पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और समाधान पर हिंदी में निबंध

प्रस्तावना

जो हमें चारों ओर से परिवृत किये हुए है, वही हमारा पर्यावरण है। इस पर्यावरण के प्रति जागरूकता आज की प्रमुख आवश्यकता है ; क्योंकि यह प्रदूषित हो रहा है। प्रदूषण की समस्या प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत के लिए अज्ञात थी। यह वर्तमान युग में हुई औद्योगिक प्रगति एवं शस्त्रास्त्रों के निर्माण के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है। आज इसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि इससे मानवता के विनाश का संकट उत्पन्न हो गया है।

मानव जीवन मुख्यतः स्वच्छ वायु और जल पर निर्भर है, किन्तु यदि ये दोनों ही चीजें दूषित हो जाएँ तो मानव के अस्तित्व को ही भय पैदा होना स्वाभाविक है; अतः इस भयंकर समस्या के कारणों एवं उनके निराकरण के उपायों पर विचार करना मानवमात्र के हित में है।

रॉबर्ट कोच के विचार

ध्वनि प्रदूषण पर अपने विचार व्यक्त करते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट कोच ने कहा था, “एक दिन ऐसा आएगा जब मनुष्य को स्वास्थ्य के सबसे बड़े शत्रु के रूप में निर्दयी शोर से संघर्ष करना पड़ेगा।

प्रदूषण का अर्थ

अच्छे वातावरण में ही जीवन का विकास सम्भव है। पर्यावरण का निर्माण प्रकृति के द्वारा किया गया है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त पर्यावरण जीवधारियों के अनुकूल होता है। जब इस पर्यावरण में किन्हीं तत्त्वों का अनुपात इस रूप में बदलने लगता है, जिसका जीवधारियों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना होती है तब कहा जाता है कि पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है।

पर्यावरण दूषित

यह प्रदूषित वातावरण जीवधारियों के लिए अनेक प्रकार से हानिकारक होता है। जनसंख्या की असाधारण वृद्धि एवं औद्योगिक प्रगति ने प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है और आज इसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि इससे मानवता के विनाश का संकट उत्पन्न हो गया है। औद्योगिक तथा रासायनिक कूड़े-कचरे के ढेर से पृथ्वी, वायु तथा जल प्रदूषित हो रहे हैं।

प्रदूषण के प्रकार

आज के वातावरण में प्रदूषण के निम्नलिखित रूप है ।

वायु प्रदूषण :- वायु जीवन का अनिवार्य स्रोत है। प्रत्येक प्राणी को स्वस्थ रूप से जीने के लिए शुद्ध वायु की आवश्यकता होती है , जिस कारण वायुमण्डल में इसका विशेष अनुपात होना आवश्यक है।

ऑक्सीजन व डाइ-ऑक्साइड की प्रक्रिया :- मनुष्य साँस द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करता है और कार्बन डाइ-ऑक्साइड छोड़ता है। पेड़-पौधे कार्बन डाइ-ऑक्साइड ग्रहण करते हैं और हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इससे वायुमण्डल में शुद्धता बनी रहती है
मनुष्य की अज्ञानता और स्वार्थ :- मनुष्य की अज्ञानता और स्वार्थी प्रवृत्ति के कारण आज वृक्षों का अत्यधिक कटाव हो रहा है। घने जंगलों से ढके पहाड़ आज नंगे दीख पड़ते हैं। इससे ऑक्सीजन का सन्तुलन बिगड़ गया है और वायु अनेक हानिकारक गैसों से प्रदूषित हो गयी है। इसके अलावा कोयला, तेल, धातुकणों तथा कारखानों की चिमनियों के धुएँ से वायु में अनेक हानिकारक गैसें भर गयी है, जो फेफड़ों के लिए अत्यन्त घातक हैं।

जल – प्रदूषण :- जीवन के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में वायु के बाद प्रथम आवश्यकता जल की ही होती है। जल को जीवन कहा जाता है। जल का शुद्ध होना स्वस्थ जीवन के लिए बहुत आवश्यक है।

नदियों मे दूषित जल :- देश के प्रमुख नगरों के जल का स्त्रोत हमारी सदानीरा नदियों है, फिर भी हम देखते हैं कि बड़े-बड़े नगरों के गन्दे नाले तथा सीवरों को नदियों से जोड़ दिया जाता है। विभिन्न औद्योगिक व घरेलू स्रोतों से नदियों व अन्य जल स्रोतों में दिनों-दिन प्रदूषण पनपता जा रहा है। कानपुर, आगरा, मुम्बई, अलीगढ़ और न जाने कितने नगरों के कारखानों का कचरा गंगा – यमुना जैसी पवित्र नदियों को प्रदूषित करते हुए सागर तक पहुँच रहा है।
मनुष्यों द्वारा प्रदूषण वृद्धि :- तालाबों, पोखरों व नदियों में जानवरों को नहलाना, मनुष्यों एवं जानवरों के मृत शरीर को जल में प्रवाहित करना आदि ने जल प्रदूषण में ज्यादा वृद्धि की है।

ध्वनि प्रदूषण :- ध्वनि प्रदूषण आज की एक नयी समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति के द्वारा पैदा किया गया है। मोटरकार, ट्रैक्टर, जेट विमान, कारखानों के सायरन, मशीनें, लाउडस्पीकर आदि ध्वनि के सन्तुलन को बिगाड़कर ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। तेज ध्वनि से श्रवण-शक्ति का हास्र तो होता ही है साथ ही कार्य करने की क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं। अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से मानसिक विकृति तक हो सकती है।

रेडियोधर्मी प्रदूषण :- आज के युग में वैज्ञानिक परीक्षणों का जोर है। परमाणु परीक्षण निरन्तर होते ही रहते हैं। इनके विस्फोट से रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल में फैल जाते हैं और अनेक प्रकार से जीवन को क्षति पहुँचाते हैं। दूसरे विश्व युद्ध के समय हिरोशिमा और नागासाकी में जो परमाणु बम गिराये गये थे , उनसे लाखों लोग अपंग हो गये थे और आने वाली पीढ़ी भी इसके हानिकारक प्रभाव से अभी भी अपने को बचा नहीं पायी है।

रासायनिक प्रदूषण :- कारखानों से बहते हुए अवशिष्ट द्रव्यों के अतिरिक्त उपज में वृद्धि की दृष्टि से प्रयुक्त कीटनाशक दवाइयों और रासायनिक खादों से भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये पदार्थ जल के साथ बहकर नदियों, तालाबों और अन्ततः समुद्र में पहुँच जाते हैं और जीवन को अनेक प्रकार से हानि पहुँचाते है।

प्रदूषण की समस्या

ज्यादा से ज्यादा बढ़ती हुई मानव-जनसंख्या, रेगिस्तान का बढ़ते जाना, भूमि का कटाव, ओजोन की परत का सिकुड़ना, धरती के तापमान में बरकत , वनों के विनाश ने विश्व के सम्मुख प्रदूषण की समस्या पैदा कर दी है। कारखानों के धुएँ से, विषैले कचरे के बहाव से तथा जहरीली गैसों के रिसाव से आज मानव जीवन समस्याग्रस्त हो गया है। आज तकनीकी ज्ञान के बल पर मानव विकास की दौड़ में एक-दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में लगा हुआ है। इस होड़ में वह तकनीकी ज्ञान का ऐसा गलत उपयोग कर रहा है , जो सम्पूर्ण मानव जाति के लिए विनाश का कारण बन सकता है।

युद्ध में आधुनिक तकनीकों पर आधारित मिसाइलों और प्रक्षेपास्त्रों ने जन-धन की ज्यादा क्षति तो की ही है साथ ही पर्यावरण पर भी जहरीला प्रभाव डाला है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य में गिरावट, उत्पादन में कमी और विकास प्रक्रिया में बाधा आयी है।

प्रदूषण की समस्या से हानियाँ :- वायु-प्रदूषण का गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव मनुष्यों एवं अन्य प्राणियों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। सिरदर्द, आँखें दुखना, खांसी, दमा, हृदय रोग आदि किसी-न-किसी रूप में वायु प्रदूषण से जुड़े हुए हैं। प्रदूषित जल के सेवन से मुख्य रूप से 5 तन्त्र सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल लाखों बच्चे दूषित जल पीने से मर जाते हैं। ध्वनि प्रदूषण के भी गम्भीर और घातक प्रभाव पड़ते हैं।

ध्वनि प्रदूषण (शोर) के कारण शारीरिक और मानसिक तनाव तो बढ़ता ही है, साथ ही श्वसन गति और नाड़ी गति में उतार-चढ़ाव, जठरान्त्र की गतिशीलता में कमी तथा रुधिर परिसंचरण एवं हृदय पेशी के गुणों में भी परिवर्तन हो जाता है तथा प्रदूषण जन्य अनेकानेक बीमारियों से पीड़ित मनुष्य समय से पहले ही उनकी मृत्यु हो जाती है।

प्रदूषण की समस्या का समाधान :- आज विश्व का प्रत्येक देश इस ओर सजग है। वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है। मानव को चाहिए कि वह वृक्षों और वनों को कुल्हाड़ियों का निशाना बनाने के बजाय उन्हें फलते-फूलते देखे तथा सुन्दर पशु-पक्षियों को अपना भोजन बनाने के अलावा उनकी रक्षा करे।

भविष्य के प्रति आशंकित, आतंकित होने से बचने के लिए सबको देश की बढ़ती जनसंख्या को सीमित करना होगा, जिससे उनके आवास के लिए खेतों और वनों को कम न करना पड़े। कारखाने और मशीनें लगाने की अनुमति उन्हीं व्यक्तियों को दी जानी चाहिए, जो औद्योगिक कचरे और मशीनों के धुएँ को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था कर सकें। संयुक्त राष्ट्र संघ को चाहिए कि वह परमाणु परीक्षणों को नियन्त्रित करने की दिशा में कदम उठाए। तकनीकी ज्ञान का उपयोग खोये हुए पर्यावरण को फिर से प्राप्त करने पर बल देने के लिए किया जाना चाहिए। वायु-प्रदूषण से बचने के लिए प्रत्येक प्रकार की गन्दगी एवं कचरे को विधिवत् समाप्त करने के उपाय निरन्तर किये जाने चाहिए।

जल-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए औद्योगिक संस्थानों में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि व्यर्थ पदार्थों एवं जल को उपचारित करके ही बाहर निकाला जाए तथा इनको जल-स्रोतों से मिलने से रोका जाना चाहिए। ध्वनि प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए भी प्रभावी उपाय किये जाने चाहिए। सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकरों आदि के प्रयोग को नियन्त्रित किया जाना चाहिए।

उपसंहार

पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण को रोकने व उसके संरक्षण के लिए पूरे विश्व में एक नई चेतना उत्पन्न हुई है। हम सभी का फर्ज है कि चारों ओर बढ़ते इस प्रदूषित वातावरण के खतरों के प्रति सचेत हों तथा पूर्ण मनोयोग से सम्पूर्ण परिवेश को स्वच्छ व सुन्दर बनाने का यत्न करें। वृक्षारोपण का कार्यक्रम सरकारी स्तर पर जोर-शोर से चलाया जा रहा है तथा वनों की अनियन्त्रित कटाई को रोकने के लिए भी कठोर नियम बनाये गये हैं।

इस बात के भी प्रयास किये जा रहे हैं कि नये वन-क्षेत्र बनाये जाएँ और जन-सामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इधर न्यायालय द्वारा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को महानगरों से बाहर ले जाने के आदेश दिये गये हैं तथा नये उद्योगों को लाइसेन्स दिये जाने से पहले उन्हें औद्योगिक कचरे के निस्तारण की व्यवस्था कर के पर्यावरण विशेषज्ञों से स्वीकृति प्राप्त करने को अनिवार्य कर दिया गया है।

निष्कर्ष

अगर जनता भी अपने ढंग से इन कार्यक्रमों में सहयोग दे और यह निश्चय करे कि जीवन में आने वाले प्रत्येक शुभ अवसर पर कम-से-कम एक वृक्ष अवश्य लगाएगी तो निश्चित हो हम प्रदूषण के दुष्परिणामों से बच सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी इसकी काली छाया से बचाने में समर्थ हो सकेंगे।

विज्ञान : वरदान है या अभिशाप और पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और समाधान पर हिंदी निबंध
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